आज (४ तारिख को) अपुन पहुँच ही गया पुणे।
कल अपन ने मम्मा, बाबा (दादा), आजी (दादी) और विदुला ताई को लिया और बैठ गया एक लम्बी सी गाड़ी में, जिसे ट्रेन, रेलगाड़ी, छुक-छुक गाड़ी कहते हैं। पुरे रास्ते इतनी भीड़ थी कि क्या कहूँ, बड़ा डर लग रहा था। अरे, अरे मुझे नहीं बाकी सबको। मगर मैं था ना, मैने सबको सम्भाला और सबको अच्छे से ले कर आया पूणे तक। सच।
अपनी पैकिंग तो मम्मा से करवा ली थी। सब लोगों का सामान खुब सारा हो गया था। मगर बाबा हैं ना, फ़िर कोई चिंता नहीं रहती।
प्लेटफ़ार्म पहुँचे तो पता चला कि गाड़ी एक घंटा लेट है। कोई बात नहीं, हमने भी एक चादर बिछाई और पसर गये सब लोग। नाना, नानी, शाशा माउशी और रुचि माउशी तो मुझे लेने के लिये ही झगड़ने लगे। फ़िर मैं सबके पास थोड़ी थोड़ी देर रहा। फ़िर बोर हो गया, और सो गया।
थोड़ी देर बाद उठा तो देखा कि सब लोग कुछ कुछ खा रहे थे, चिप्स सोया मिल्क और जाने क्या क्या। खाने दो।अपने को क्या? अपन थोड़ी ना ये सब फ़ालतु का खाते हैं।
आखिरकार ट्रेन आई, और हम लोग अपनी जगह ढुँढ कर जम गये।
ट्रेन में क्या क्या हुआ ये बाद में बताउंगा। सुबह मेरी नींद खुली तो मैने सबको पुणे में पाया, हम लोग प्लेटफ़ार्म पर खडे थे और डैडू की राह देख रहे थे।
आखिर दिख ही गये डैडू, हमेशा की तरह लेट। बाबा ने कहा कि डैडू जिंदगी में सिर्फ़ पहली बार ही जल्दी आये थे। ही ही ही। वैसे अपुन भी डैडू के नक्शे कदम पर इच्च चले हैं, अपन भी १५ दिन जल्दी वाले हैं। ही ही ही।
डैडू तो इत्ता सारा सामान देख के चकरा ही गये। ढुँढ ढाँड के कुली लाये, ऑटो तय किया। सामान चढाया, और चल पड़े "अपने घर की तरफ़"।
अपन तो पहली बार पुणे वाले घर आये हैं। घर तो साफ़-सुथरा दिख रहा है। लगता है डैडू ने मम्मा की सारी 'इंस्ट्रक्शंस' अच्छे से फ़ॉलो की है।
चलो अभी चलता हूँ, बहुत सारे काम पड़े हैं।
आगे का फ़िर लिखुँगा।
कल अपन ने मम्मा, बाबा (दादा), आजी (दादी) और विदुला ताई को लिया और बैठ गया एक लम्बी सी गाड़ी में, जिसे ट्रेन, रेलगाड़ी, छुक-छुक गाड़ी कहते हैं। पुरे रास्ते इतनी भीड़ थी कि क्या कहूँ, बड़ा डर लग रहा था। अरे, अरे मुझे नहीं बाकी सबको। मगर मैं था ना, मैने सबको सम्भाला और सबको अच्छे से ले कर आया पूणे तक। सच।
अपनी पैकिंग तो मम्मा से करवा ली थी। सब लोगों का सामान खुब सारा हो गया था। मगर बाबा हैं ना, फ़िर कोई चिंता नहीं रहती।
प्लेटफ़ार्म पहुँचे तो पता चला कि गाड़ी एक घंटा लेट है। कोई बात नहीं, हमने भी एक चादर बिछाई और पसर गये सब लोग। नाना, नानी, शाशा माउशी और रुचि माउशी तो मुझे लेने के लिये ही झगड़ने लगे। फ़िर मैं सबके पास थोड़ी थोड़ी देर रहा। फ़िर बोर हो गया, और सो गया।
थोड़ी देर बाद उठा तो देखा कि सब लोग कुछ कुछ खा रहे थे, चिप्स सोया मिल्क और जाने क्या क्या। खाने दो।अपने को क्या? अपन थोड़ी ना ये सब फ़ालतु का खाते हैं।
आखिरकार ट्रेन आई, और हम लोग अपनी जगह ढुँढ कर जम गये।
ट्रेन में क्या क्या हुआ ये बाद में बताउंगा। सुबह मेरी नींद खुली तो मैने सबको पुणे में पाया, हम लोग प्लेटफ़ार्म पर खडे थे और डैडू की राह देख रहे थे।
आखिर दिख ही गये डैडू, हमेशा की तरह लेट। बाबा ने कहा कि डैडू जिंदगी में सिर्फ़ पहली बार ही जल्दी आये थे। ही ही ही। वैसे अपुन भी डैडू के नक्शे कदम पर इच्च चले हैं, अपन भी १५ दिन जल्दी वाले हैं। ही ही ही।
डैडू तो इत्ता सारा सामान देख के चकरा ही गये। ढुँढ ढाँड के कुली लाये, ऑटो तय किया। सामान चढाया, और चल पड़े "अपने घर की तरफ़"।
अपन तो पहली बार पुणे वाले घर आये हैं। घर तो साफ़-सुथरा दिख रहा है। लगता है डैडू ने मम्मा की सारी 'इंस्ट्रक्शंस' अच्छे से फ़ॉलो की है।
चलो अभी चलता हूँ, बहुत सारे काम पड़े हैं।
आगे का फ़िर लिखुँगा।
गुड गुड भाई.. वैसे थोड़ी फोटो शोटो लगाया करो दोस्त..
ReplyDelete