एक बड़ी अजीब बात नोटिस कर रहा हूँ कि जबसे हम लोग पुणे आये हैं, उसके दूसरे ही दिन से डैडू रोज सुबह सुबह उठ कर खटर-पटर करते हैं, और फ़िर तैयार होकर कहीं निकल जाते हैं।
एक तो मैं वैसे ही रोज रात को उन्हे (ज्यादातर तो मम्मा को) जगाकर रहता हूँ। वो क्या है ना कि मुझे रोज रात को उठने के बाद मम्मा/बाबा/आजी की गोदी में चढकर उन्हें नाईटवॉक करवाना बहुत पसंद है।
अगर वो लोग मुझसे बचने की कोशिश करते हैं और मुझे चुपचाप से पलंग पर लिटा देते हैं तो मैं फ़टाक से जान जाता हूँ और ...फ़िर आप तो समझते ही होंगे कि अगर मुझे ये पता चला तो मैं क्या करुंगा।
अरे फ़िर क्या, उन्हें मुझे उठाना ही पड़ता है। ही ही ही।
तो भई, अब सुबह सुबह तो मैं सोता रहता हूँ कि कुछ खटर-पटर से मेरी नींद खुल जाती है। डैडू दिखते हैं कुछ तैयारी करते हुये। फ़िर कहीं निकल जाते हैं। उसके बाद तो वो मुझे रात को ही नजर आते हैं।
मुझे मम्मा ने तो बताया था कि डैडू का ऑफ़ीस ९:३०-१०:०० बजे से होता है फ़िर ये डैडू ६:३० बजे से किधर निकल जाते हैं?
हाँ याद आया, मम्मा ने बताया था कि डैडू फ़ुटबाल खेलते हैं। पर वो तो काफ़ी दिनों से बंद है। और वैसे भी डैडू फ़ुटबाल के गेटअप में तो नहीं जाते।
सो बहुत सर खुजाने के बाद अब पता चला कि डैडू के सर पर गॉल्फ़ का भूत चढा है। और वो सुबह सुबह गॉल्फ़ सीखने जा रहे हैं। वो भी ऐसे पता चला कि आने के बाद डैडू घर भर में सबको बताते फ़िरते हैं कि आज मैने ये किया, आज मैने वो किया, आज ये, आज वो..!
चलो, अच्छा है, सीख लें तो फ़िर हम भी बाद में उन्हीं से सीख लेंगे।
तब तक तो अपन बोलेंगे - मेरे डैडू को गॉल्फ़ आता है (यानि सीख रहे है)
Wednesday, July 8, 2009
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प्रांजय आज आपका ब्लॉग देखा।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया नन्हे राजा!
डैडी के साथ आप भी चले जाया करो गोल्फ सीखने, अभी से सीखना शुरु करोगे तभी तो बड़े होकर बड़े खिलाड़ी बनोगे.
ReplyDeletewaah.........
ReplyDeletebahut pyara............
good.narayan narayan
ReplyDeleteसीख लो दोस्त तुम भी..
ReplyDeleteदोस्त तुम्हे भी जोड़ रहा हुँ आदि के बच्चों के कुनबे में सबसे छोटे हो तुम वहाँ..
ReplyDeleteअरे वाह दोस्त, स्वागत है तुम्हारा. पता है तुम्हारा और मेरा जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है. ३० अप्रैल....
ReplyDelete●๋• लविज़ा ●๋•
awesome
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